जनता के चाहने पर भी उसे मुख्यमंत्री की सभाको नहीं जाने दिया और जिन्होंने जाने का प्रयास किया उसे डराया और धमकाया गया । पुलिस पर गोलीबार करने तक की नौबत आगई । लेकिन यशवंतरावने संतुलनवृत्ति न छोडी । परिणाम यह हुआ कि गोलीबार के बदले अश्रुगैस का ही प्रयोग किया गया । जनता कर्फ्यु के प्रसंग पर एक महती सभामें भाषण करते हुए यशवंतरावने कहा : ''कोई ऐसी शक्ति नहीं, जो तुम पर अन्याय-अत्याचार करने के लिए आगे आएँ । पूज्य बापूके गुजरातके प्रति अगर अन्याय हुआ तो संसार में न्याय जेसी कोई चीज ही न रहेगी । गुजरात और महाराष्ट्र की जनता दीर्घावधि से भाई-भाई बन कर रही है । ऐसे विशाल हृदय के नागरिकों में परस्पर वैर-मत्सर और असंतोष-अविश्वास का बीजारोपण करने का प्रयत्न इस जन्ममें तो कदापि सफल न होगा । संकुचित प्रांतीय मनोवृत्ति को जडमूल से उखाड फेंकने के हेतु गुजराती जनता को मराठी जनता से सहकार करना चाहिये । जिस तरह गुजराती प्रजा महाराष्ट्रीय प्रजा को कुछ दे सकती है ठीक उसी तरह महाराष्ट्र से वह कुछ प्राप्त भी कर सकती है । राष्ट्रीय एकता और अनुशासन की सुदृढ नींव पर ही पूज्य बापूने भारत को तैयार किया - तभी वह इतनी सारी मुसीबतों, विषमताओं, उलझनों और संकटों के बावजूद भी आजादी के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान हो सका । राष्ट्रीय स्वातंत्र्य ही नवोदित जनतंत्र की अप्रतिम कसौटी है । अतः देशहितार्थ प्रत्येक भारतीय को एकता बनाये रखना चाहिए ।'' अहमदाबाद के प्रक्षोभक निर्देशन, हडताल, आगजनी की वारदातें एवं जनता कर्फ्यु को लेकर सारे राज्य में हाहाकार मच गया । मुख्यमंत्री के अपमान को नये बम्बई राज्य की जनताने अपना अपमान समझा । राष्ट्रीय ध्वज को टुकडे-टुकडे करने की गन्दी मनोवृत्ति से गुजरात की उज्ज्वल परंपरा पर कलंक का टीका लगा दिया । सारे देश के गुजरातियों के मस्तक शर्म से झुक गये । अहमदाबाद के पश्चात् पूना की महात्मा फुले सब्जी मंडी में पूना नगर निगम के अध्यक्ष श्री बाबुराव सणस की अध्यक्षता में आयोजित प्रचंड सभा में यशवंतरावने विशाल द्विभाषिक के प्रचार की अपनी जिद्द न छोडते कहा : ''नूतन द्विभाषिक की निर्मिति से सामान्य जनता का आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास सधेगा । शैक्षणिक स्तर में प्रगति होगी । समाज जीवन उन्नत होगा । विशाल द्विभाषिक का निर्णय लोकसभा ने किया है - और हमें अनुशासनबद्ध सैनिक की तरह उसे मूर्तरूप देने के लिए अपने को खपा देना चाहिए ।''
तत्पश्चात् जिस फलटन रियासतने एक बार यशवंतराव को गिरफ्तार कर ब्रिटिश सत्ताके हवाले किया था उसी फलटनने राजासाहब नायक निम्बालकर की अध्यक्षतामें अपने दायाद का भव्य स्वागत किया । इस प्रसंग पर सुश्री वेणुताई भी उनके साथ थी । अपने ही मैके में किये गये पतिकी कर्तव्यदक्षता एवं योग्यता के सम्मान से उनकी आँखें छलछला पडीं । कंठ अवरुद्ध हो उठा और क्षणार्ध में वह सदृश्य हृदय-पट पर अंकित हो उठा जब वे सख्त बीमार थी । जीने की कोई आशा न थी । पति देशकी आजादी के लिए वन-वन भटक रहा था । ब्रिटिश सरकारने उसकी गिरफ्तारी के लिए १०००० का बक्षीश रखा था । मृत्युके पूर्व पति के अंतिम दर्शन होंगे भी या नहीं यही चिंता खाये जा रही थी कि अचानक पतिदेव प्रगट हुए । प्रेम और स्नेह से मिश्रित वाणी में सांत्वना दी । जीने की इच्छा प्रबल हो उठी । और इधर पुलिसने अचानक छापा मार प्रियनाथ को गिरफ्तार कर, बन्दी बना लिया । लेकिन पतिदेव के भव्य मुखमंडल पर परेशानी की रेखा तक न थी । भय तो मानों उनसे कोसों दूर था । मीठा स्मित बिखेरते हुए पति ने बिदा ली । समय पानी की तरह बहता रहा ही गया । कारावास से रिहाई ! संसदीय मंत्री, पूर्ति और जंगल मंत्री, राजस्वमंत्री, स्वायत्तशासन मंत्री और राज्य के मुख्य मंत्री सीढी पर सीढी चढते ही गये । और वर्षों पहले हथकडी पहने पतिदेव को देखनेवाली, आज जनता द्वारा किया जा रहा उनका भव्य स्वागत देख रही है । उनके दर्शनों के लिए जनता पागल बन रही है । कितनी विचित्र है यह दुनिया ! कैसी पागल है यह दुनिया और उसके रहनेवाले !
मराठवाडा दौरे में सर्वप्रथम तुलजापूर में बसी महाराष्ट्र की कुलदेवी तुलजापूर भवानी माता का श्रध्दासिक्त हो दर्शन किया - नैवेद्य चढाया और आगे प्रस्थान किया । विशाल द्विभाषिक में मराठवाडा अभी सदियों तक ही सम्मिलित हुआ था । इसके पहले वह हैदराबाद के निजाम का अंग बना हुआ था । यशवंतरावने अपने नये सहयोगी मराठी भाषी प्रदेश के प्रांगण में १९५७ के आम चुनाव का चुनावान्दोलन शुरू करते हुए जालना में प्रवचन करते हुए घोषित किया कि, ''पिछले ६०-७० वर्षों से काँग्रेसदलने देश की सभी समस्याओं का उपयुक्त हल निकाला है । उसे गुलामी के नागपाश से मुक्त कराया है । सदियों से राजतन्त्र में सडती-गली जनता को प्रजातंत्र का उपहार दे, मुक्तता का अमर सन्देश दिया है और भावी में भी वह देश को सही रास्ते पर ले जाने में समर्थ सिद्ध होगी । अतः काँग्रेस को मत प्रदान कर लोकतंत्रात्मक प्रणाली का संरक्षण करना चाहिए । जनतंत्र में विरोधी हलों को भी महत्वपूर्ण स्थान हैं - पर हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे देश में ऐसा कोई विरोधी दल है ही नहीं । हिंदुस्थान-पाकिस्तान को एक करने की अखंड घोषणाएँ करनेवाली हिन्दु महासभा महाराष्ट्र-गुजरात को भाषिक-शिबिरों में विभाजित करना चाहती है । रशिया-चीन का मार्गदर्शन ग्रहण करने का सतत उपदेश देनेवाला साम्यवादी दल पूज्य बापू के गुजरात का मार्गदर्शन नहीं चाहता । लोकतंत्र में सर्वोपरि लोकसत्ता के निर्णय को कार्यान्वित करना प्रत्येक दल का आद्य कर्तव्य होता है - पर हमारे यहाँ के प्रजा-समाजवादी दलने अपने नेताओं के आदेश को ही ताक पर रख दिया है । ऐसे दलों से जनतंत्र की रक्षा भला कैसे होगी ? अतः देश की सुदृढ और सबसे बडी पार्टी काँग्रेस के पक्षमें ही मतदान कर उसे विजयी बनाइये ।''