यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -५२

जब तक बम्बई राज्य के विषय में अंतिम निर्णय नहीं हुआ था हममें से प्रत्येकने काँग्रेसदल एवं समितिने संयुक्त महाराष्ट्र की इष्ट सिद्धि प्राप्‍त करने हेतु विभिन्न मार्गोंका अवलम्ब किया था । प्रत्येक की राहें अलग थीं पर ध्येय एक ही था । लेकिन जब अंतिम निर्णय हो चुका है तो हमें नवनिर्माण के लिय, नये राज्य की समृद्धि और वृद्धि के लिए कंधेसे कंधा भिडा कर काम करना चाहिए । एक साथ कदम बढा कर आगे बढना चाहिए ।'' ठीक इसी तरह सोलापुर जिला काँग्रेस द्वारा पार्क मैदान पर आयोजित स्वागत सभा में बोलते हुए यशवंतरावने कहा : ''यह पहला अवसर है कि समस्त मराठी भाषी जनता एक राज्य का अंग बन गई है; द्विभाषिक राज्य में भी उन्हें एकभाषी राज्यकी तमाम सुविधाएँ और लाभ उपलब्ध होंगे । संयुक्त महाराष्ट्र का स्वप्न अनायास ही पूर्ण होगया है । राज्यीय भाषा के रूप में मराठी का खुल कर प्रयोग किया जाएगा और बिना किसी रुकावट-बाधाके मराठी संस्कृति का दिन-ब-दिन विकास होगा ।'' गुजरात के कछोली ग्राम के ग्रामीणों द्वारा अपने नौजवान मुख्य मन्त्री का किये गये सम्मान का प्रत्युत्तर देते हुए उन्होंने बताया : ''बम्बई नगर यह मराठी-गुजराती भाई-भाई का अनन्य प्रतीक है, जो पिछली दो सदियों से हमें शांतिमय सहअस्तित्व, सद्‍भावना, प्रेम और स्नेह का मूक संदेश देता है । इस संसार में प्रेम और स्नेह का विभाजन ना कभी हुआ है ना कभी होगा । यह तथ्य मान्य होनेपर ही दोनोंने सहजीवन का मार्ग अपनाया है ।''

मुख्य मंत्री बन जाने पर यशवंतरावनें पहला जो काम किया वह विशाल राज्य के विभिन्न स्थानों का तूफानी दौरा ! सबसे पहले वे महाराष्ट्र में गये । महाराष्ट्र की जनता को विशाल द्विभाषिक ही क्यों योग्य है ? उससे संयुक्त महाराष्ट्र को क्या लाभ होगा ? मराठी संस्कृति का विकास कैसे होगा ? आदि अटपटी समस्याओं का अपनी अकाट्य दलीलों के साथ निराकरण किया । विदर्भ के दौरे में उन्होंने वर्धा, चांदा, अकोला आदि शहरों को भेंट दी । १६ दिसम्बर को नागपुर शहर के चिटणीस पार्क की महती सभा में प्रवचन करते हुए यशवंतरावने नागपुरनिवासियों को आश्वासन और सांत्वन देने का प्रयास किया । उन्होंने अपने भाषण में कहा : ''पांच करोड जनता को एक नये राज्य की अभी अभी १ नवम्बर को नींव पडी है । इन पाँच करोड में विभिन्न परंपराएँ, विभिन्न धर्म, विभिन्न रीति-रिवाज, विभिन्न वेशभूषा, विभिन्न भाषा और विभिन्न संस्कृति का सलोना संगम है । उपर-उपर से यह सब अलग-अलग है लेकिन सभी का देश एक है, सभी का धर्म एक है, सभी की संस्कृति एक है - वह है भारत देश, हिंदु धर्म और भारतीय संस्कृति ! नागपुरनिवासियों का मैं किन शब्दोंमें आभार मानूँ - यही नहीं सुझता ? वाकइ मैं अत्यधिक कृतज्ञ हूँ नागपुर और विदर्भ का ! जिन्होंने अपने पूरे होते महाविदर्भ के स्वप्न को मराठी भाषी प्रदेश की एकता एवं अखंडता के लिए परित्याग दिया । आजसे कुछ समय पूर्व तक नागपुर एक उन्नत राज्य की राजधानी था, राजनैतिक कार्यों का केन्द्र था, लेकिन आज न रही । नागपुरनिवासियों को इसका दुःख भी है । मैं खुद भी दुःखानुभव करता हूँ । लेकिन जिस तरह जन-कल्याण और विश्वहितार्थ भगवान नीलकंठने विषपान किया था ठीक उसी तरह हमें भी राष्ट्रीय ऐक्य, प्रजातांत्रिक प्रशासन की कसौटी एवं दलनिष्ठा के लिए हँसते हँसते विषपान करना होगा । नागपुर शहर का महत्त्व कायम रखने के लिए बम्बई सरकार सदा प्रयत्‍नशील रहेगी । हमारे प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने भी यही बात बार-बार कही है । और मैं उसे दुहरा कर आपको निश्चिंत करना चाहता हूँ । अंतमें, मैं यही कहूँगा कि यह जनता का राज्य है; प्रजाराज्य है । अब यहाँ कोई राजा नहीं है । राजा और प्रजा दोनों हम ही हम हैं ।''

महाराष्ट्र की समिति ने ही गुजरातमें महागुजरात जनता परिषद के रूपमें पुनरावतार धारण किया था । दोनों की रीति-नीति एक थी । दोनों एकभाषी राज्य की आड में अपनी देढ चावल की खिचडी अलक पकाना चाहते थे । लेकिन केन्द्रीय वरिष्ठ नेताओं के निवेदन तथा मुख्य मंत्री यशवंतराव के तूफानी दौरे से जनता शांत होती जा रही थी । वह इनके निवेदन तथा विचारों पर पुनः सोचने तक की स्थिति में आ गई थी । सत्तारूढ दलकी कुछ दलीलें इनके गले उतरने लगी थी । उधर संयुक्त महाराष्ट्र समिति तथा महागुजरात जनता परिषद इस स्थितिका सामना करने के लिए कतई तैयार न थी । अल्पावधि में ही भारतभरमें आम चुनाव सम्पन्न होनेवाले थे । अगर इस समय जनसाधारण में असंतोष की आग न भडका दे तो देश के सर्वशक्तिशाली दल के सामने टिकना मुश्किल ही नहीं बिल्कुल असंभव था । अतः कृत्रिम विरोध की लहर उभर आई । विदर्भ का व्यस्त दौरा पूर्ण कर यशवंतरावने १५ दिसम्बर को अहमदाबाद के लिय प्रस्थान किया । इससे पहले कई बार इनका आगमन गुजरात में हुआ था । पर मुख्यमंत्री का दायित्व ग्रहण करने के अनन्तर पहला ही अवसर था । अहमदाबाद पुलकित हृदय से उनका स्वागत करना चाहता था । भव्य सभा का आयोजन किया गया था । पर जनता परिषद भला कैसे शांत बैठी रहती ? उसने इनके विरुद्ध में निर्देशन तथा 'जनता कर्फ्यु' लगाने का निर्णय लिया । कर्फ्यु हमेशा संरक्षणाधिकारी ही संकटापन्न परिस्थिति में लगाते हैं । लेकिन यहाँ साम्यवादी प्रणाली का अनुकरण कर जनताने ही कानुन को हाथमें ले लिया था । जनता परिषद ने ऐसी तो आतंकमय परिस्थिति पैदा कर दी थी अहमदाबाद में कि जनता को विवश हो कर उससे सहयोग करना पडता था ।