यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -५१

नवम्बर की पहली तारीख को यशवंतराव ने अपने मंत्री मंडल का गठन किया, जिसमें विशाल द्विभाषिक के सभी हिस्सों का पूर्ण प्रतिनिधित्व था । यशवंतराव ने राज्य का मुख्यमंत्रीत्व ग्रहण कर नये राज्य की जनता के नाम संदेश भेजते हुए कहा कि, ''आजका दिन परम मंगलकारी है । सभी लोग दीपावलि मनाने में मग्न हैं । दीवाली का अवसर होने के कारण नये बम्बई राज्य का निर्मिति-दिन भी मांगल्य और कल्याणकारी भावना से युक्त है । अभी अभी वर्षा ॠतु खत्म हुई है अतः धरती भी हरी चुनरिया ओढ पुलकित हो उठी है । अच्छी बारिश के कारण किसानों का मुखमंडल दीप्‍त है । स्वच्छ हवा, विपुल जलराशि, अच्छी फसल का समय और त्यौहार के कारण सभी के मन प्रफुल्लित हैं । ऐसे शुभावसर पर हम नये राज्य विशाल द्विभाषिक के नागरिक बन रहे हैं । हमारे लिये यह क्या कम खुशी का दिन है ?

''नया राज्य पाँच करोड आबादी से युक्त १ लाख ९० हजार चौरस वर्गमील का एक विस्तृत प्रदेश है । जन-संख्या को छोड दिया जाय तो क्षेत्रफल, शिक्षण, शासन-प्रणाली, सरकारी उत्पन्न, आर्थिक विकासक्षमता, औद्योगिक प्रगति, यातायात, परिवहन संचारशक्ति आदि की दृष्टि से समस्त भारतवर्ष में अद्वितीय है । किसी भी प्रदेश की उन्नति और समृद्धि के लिए परमावश्यक आर्थिक क्षमता के स्रोत स्वरूप कच्चा माल, नये कार्य की जिम्मेदारी के लिए यथेष्ट श्रम-शक्ति और विकसित क्षेत्र की रीढ स्वरूप योग्य निष्णात - ये सभी नये बम्बई राज्यमें उपलब्ध हैं । भारत के अनेक पुनर्गठित राज्यों में बम्बई राज्य को विशेष महत्व है । परिणामस्वरूप बम्बई का विशाल द्विभाषिक राज्य भारत के समक्ष कौनसा आदर्श उपस्थित करेगा इस ओर भारतीय जनता आस्थापूर्वक लक्ष्य दे रखी है । मराठी और गुजराती प्रजा को एक बार फिर एक-दूसरे का पूरक बन नये राज्य की नई कल्पनाओं को, महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करना है । यही उनकी कसौटी है । और इस कसौटी पर ही विशाल द्विभाषिक की गगनचुम्बी अट्टालिका का सारा आधार है । नये राज्यमें जात-पात, धर्म या भाषा-भेद की जरा भी परवाह किये बिना तटस्थ भावना से राज्यप्रशासनिक कर्तव्य पूरे किये जायेंगे । भाषा और प्रादेशिक भेद-भाव को यहाँ स्थान न होगा । जिस दिन विशाल द्विभाषिक का मंगल उदय हुआ उसी दिन सभी झगडें - वाद मिट गये हैं । अब गई सो गंगा और रहा सो तीरथ समझ कर हमें नवराज्य के निर्माण में तन-मन-धनसे लग जाना चाहिए । देश आजाद होने के पूर्व भी इस राज्यने अनेक उत्तमोत्तम प्रशासक राज्यीय सरकार तथा अखिल भारत को प्रदान किये थे । नया राज्य हमारे राष्ट्रपिता पूज्य बापूकी ठीक वैसे ही हिन्दकेसरी लोकमान्य तिलक की कर्मभूमि एवं पुण्यभूमि हैं । स्वामी दयानंद सरस्वती, हेमचंद्राचार्य, कवि नर्मद, समर्थ रामदास, तुकाराम इसी भूमिमें खेले, खाये और बढे हुए हैं । सर फिरोजशाह मेहता, नामदार गोखले श्री विठ्ठलभाई पटेल जैसे राज्यधुरंधर पंडित इसी की मिट्टी और आबोहवा में पले । स्वाधीन भारत में स्व. बालासाहब खेर एवं श्री मोरारजी देसाई जैसे राजनीति के मंजे हुए खिलाडियों ने इसकी बागडोर सम्हाल, बम्बई राज्यके आदर्श प्रशासन की पताकाएँ सर्वत्र फैलाई हैं । मैं उन्हीं विभूतियों से प्रेरणा, प्रोत्साहन और शक्ति ले नये राज्य विशाल द्विभाषिक के शासन-सूत्र का कठिन उत्तरदायित्व अपने पर ले रहा हूँ । इस आशासे कि इनका मार्गदर्शन और प्रेरणा मुझे सदा-सर्वदा आगे बढाती रहेगी ।''

मुख्यमंत्रीत्वके अधिकार-सूत्र ग्रहण करने के पश्चात् यशवंतराव का भव्य स्वागत समारोह करने का प्रथम सम्मान उनकी जन्मभूमि कराड को मिला । कराड जैसी छोटी नगरीने अपने सपूत के स्वागतमें आँखें बिछा दीं । स्नेह और ममता से पुत्र को दुलराया और ऐसा रत्‍न अपनी कोख से जन्मा अतः स्वयं के भाग्य की सराहना की । कराड-निवासियों के आबाल-वृद्ध, राय-रंक, स्त्री-पुरुष की खुशी का तो कहना ही क्या था ? उनका हृदय-मयूर आनन्द-विभोर हो झूम उठा था । १४ नवम्बर के दिन लता-पल्लवों से सुशोभित कराडने अपने सलोने बेटे का आनन्दातिरेक के वशीभूत हो आज तक की सभी परंपराओं की सीमाओं का उल्लंघन कर सत्कार किया । एस. टी. स्टेन्ड विशाल मानव मैदिनी से भर गया । सभी के चेहरे एक प्रकार कीं स्वर्गीयानन्दकी आभा से दमक रहे थे । इस प्रसंग पर यशवंतराव के सभी सगी-संगाथी, पुराने मित्र, विरोधी शिबिर के लोग तथा भूमिगत आन्दोलन के सहयोगी उपस्थित थे । सभामें लगभग १२०० पुष्पमालाएँ अर्पण की गईं और एक लाख से अधिक जनसंख्याने उसमें सम्मिलित हो अपनी खुशी प्रकट की ।

भव्य स्वागत समारोह को देख कर यशवंतराव की आँखें छलछला आईं । उन्होंने गद्‍गद् कंठ से कहा : ''भारतीय संसद द्वारा किये गये निर्णय से एक नये युग का प्रारम्भ हो रहा है, वह महात्मा गांधी एवं लोकमान्य तिलकजी की श्रेष्ठ सीख का अत्युत्तम प्रतीक है । मुठ्ठीभर लोगों को प्रसन्न करने के लिए इस निर्णय में कदापि बदल नहीं हो सकता; बल्कि उसे बदलने की सत्ता केवल भारतीय संसद को ही है । मुख्यमंत्री पद जैसे प्रादेशिक सत्ता के सर्वोच्च स्थान पर मेरी नियुक्ति का अर्थ है भारत में पुरोगामी-वृत्ति का बीजारोपण होना ।