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अभिनंदन ग्रंथ - (हिंदी लेख)-महाराष्ट्र दर्शन-2

इस उत्साह की लहर पर यदि एक घडी ठहरकर विचार किया जाय तो हम इसे महाराष्ट्र के अतीत के तट से जुडा पाएंगे । इसलिये यह कोई आकस्मिक और अस्वाभाविक घटना नहीं है । इतिहास की भाषा में यह कहा जा सकता है कि इस प्रदेश का अतीत वर्तमान से आ मिला है और इस प्रकार वे सब भावनाएं जो कुछ समय तक सोयी पडी थी, अब जाग उठी और आधुनिक चेतमा का एक अंग बन गयीं है । इस भूमि को और इसके द्वारा देश के अन्य भागों को शिवाजी ने जिस तरह आंदोलित किया था उसका असर मानो अभी भी यहां की पहाडियों और मैदानो पर है । इसलिये नवचेतना की उस लहर को जो स्वाधीनता से पूर्व और उसके पश्चात् अद्भूत हुई, महाराष्ट्र के बीते इतिहास से वेग मिलना स्वाभाविक है ।

जिस समय राजपूत लोक उत्तर-पश्चिम से आनेवाले सुलतानों के प्रति आत्मसमर्पण कर चुके थे, शिवाजी के नेतृत्व में मराठों ने ही मुगल साम्राज्य के विरुद्ध सफल रोकथाम की व्यवस्था की । भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना के बाद,बंगाल के साथ महाराष्ट्र ने भी स्वातंत्र्य-युद्ध में अग्रणी भाग लिया । गोखले, तिलक और अन्य नेताओं ने अपने नेतृत्व द्वारा जनसाधारण की उमंगो को अभिव्यक्त किया । 'स्वराज्य' शब्द का प्रयोग पहली बार लोकमान्य तिलक ने किया ।

सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस प्रदेश का जीवन कम समुद्ध और प्रेरणादायक नहीं । यहीं के पावन और शान्त वातावरण में बौद्ध मिक्षुओ और जैन तथा हिन्दु साधुओ की तप और चिन्तन की प्रेरणा मिली । उन्होने अपने रहने के लिये यहां की पहाडियो में अनेक कन्दराएं बना डालीं । आधुनिक अजन्ता और इलोरा तथा एलिफंटा की गुफाए उसी धर्ममूलक कलात्मक चेतना के नमुने है । मध्ययुग में संत ज्ञानेश्वर ने इस परम्परा को सूत्रबद्ध किया और उनके बाद नामदेव, तुकाराम आदि सन्तों ने भक्ति मार्ग द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक विचारधारा का व्यापक प्रसार किया । कौन कह सहका है कि यह विरासत आज भी भारत के, विशेषकर महाराष्ट्र के कलाकारों को अनुप्राणित नही कर रही ?

पुना नगर का दर्शन हमें महाराष्ट्र के ऐतिहासिक वैभव की रंगबिरंगी झलक दिखाता है । इस नगर के उदय एवं विकास का इतिहास मराठा शक्ति के उत्थान का इतिहास है । शिवाजी के अभ्युदय से मुगल, बहामनी तथा अन्य कुछ सत्ताओ के कारण पूना की हुई दुर्दशा और अपमान के एक अध्याय की परिसमाप्ति हुई । शिवाजी ने पूना नगर की जो प्रतिष्ठा स्थापित की वह आज तक विद्यमान है । न केबल उन्होने किन्तु उनके पश्चात् पेशवाओ ने मी पूना को ही अपनी राजधानी बनाया ।  इसलिये महाराष्ट्र की जनता में आज भी पूना नगर के प्रति सम्मान की भावना तथा इसकी समुन्नति में योग देने वालों के प्रति श्रद्धा और गौरव का भाव रहना स्वाभाविक ही है । आज हमारा देश स्वतंत्र है और हमारे भारतीय गणराज्य के सभी प्रदेश एक सूत्र में आबद्ध है, अत: किसी प्रदेश विशेष का गौरव तथा उसकी महत्ता समूचे भारत का गौरव और महत्ता है और हमारा यह कर्तव्य है कि हम इस भावना को प्रोत्साहन दें । यह धारणा भ्रममात्र है कि राष्ट्रीय गौरव और प्रादेशिक महत्त्व में परस्पर विरोध है । एक बार यदि यह बात हमारे हृदय में स्पष्ट हो जाय तो महाराष्ट्र के दर्शन और वहां के उल्लास और उमंगो से पूरित जन-हृदयों को देखकर अखिल राष्ट्र की नवचेतना का रहस्य हमारे सम्मुख उद्घाटित हो जाएगा और यह दृश्य हर दर्शक के लिये प्रेरणा का स्त्रौत बन सकेगा ।